इतने बेताब – इतने बेक़रार क्यों हैं
लोग ज़रुरत से ज़्यादा होश्यार क्यों हैं
मुँह पे तो सभी दोस्त हैं लेकिन
पीठ पीछे दुश्मन हज़ार क्यों हैं
हर चेहरे पे इक मुखौटा है यारो
लोग ज़हर में डूबे किरदार क्यों हैं
सब काट रहे हैं यहाँ इक दूजे को
लोग सभी दोधारी तलवार क्यों हैं
सब को सब की हर इक खबर चाहिए
लोग चलते फिरते अखबार क्यों हैं
” लेखक अज्ञात “